परीक्षण के लिए तैयार प्राचीन ज्ञान! (2024)

कोविड-19 से निबटने को दुनिया भर के चिकित्साशास्त्री रात-दिन जूझ रहे. इसी कड़ी में अब पतंजलि की आयुर्वेदिक औषधियों को लेकर शुरू हुए चिकित्सीय परीक्षणों ने हलचल मचाई.

केरल में कोट्टयम की 58 वर्षीय आयुर्वेदिक नर्स एन. मीना को याद है कि बचपन में उनके गृहनगर चंगनचेरी के हरेक बगीचे में अश्वगंधा का पौधा जरूर होता था. यह तनाव और अनिद्रा से लेकर अल्सर और शुक्राणुओं की कमी तक कई रोगों का इलाज था. उनके शब्दों में, ‘‘आपको जो भी परेशानी हो, अश्वगंधा उसे ठीक कर सकती थी. आयुर्वेद के ग्रंथों में यह सबसे ताकतवर औषधि है.’’

अब जब देश भर में चार आयुर्वेदिक उपचारों का नैदानिक परीक्षण शुरू हो रहा है, कई लोगों को भरोसा है कि यह देसी पौधा कोविड के दुष्प्रभावों का मुकाबला करने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा सकता है, जिसकी बहुत जरूरत है. प्राचीन अभिलेख (ईसा पूर्व 1200 वर्ष पहले लिखे गए अथर्ववेद जितने पुराने) और अपेक्षाकृत हाल ही के छोटे स्तर के नैदानिक अध्ययनों से अश्वगंधा के ऐसे गुणों के संकेत मिले हैं, जो वायरल संक्रमणों के खिलाफ फायदेमंद हो सकते हैं.

इसकी जड़ से घोड़े जैसी गंध आने की वजह से इसका नाम अश्वगंधा पड़ा. यह दर्द से प्रभावित तंत्रिकाओं को शांत कर देती है. इसमें वाइथैफेरिन ए नाम का एक प्राकृतिकरसायन होता है, जिसका जलन-रोधी और रोग प्रतिरोधक क्षमता को दुरुस्त करने वाला असर सामने आया है. इसे दशकों तक दूध या चाय में मिलाकर पिया जाता रहा है, अब पहली बार वैज्ञानिक परिस्थितियों में इस पौधे के गुणों का परीक्षण होगा.

मौखिक और लिखित ज्ञान का समृद्ध भंडार होने के बावजूद भारत ने बड़े नैदानिक परीक्षणों में आयुर्वेद की जांच-पड़ताल पहले कभी नहीं की. इस लिहाज से आइसीएमआर की तकनीकी सहायता से आयुष मंत्रालय और सीएसआइआर की ओर से किए जा रहे परीक्षण आयुर्वेदिक उपचारों की आधुनिक और वैज्ञानिक समझ विकसित करने में बेहद अहम होंगे. इससे जुड़े लोग इसे लेकर उत्साहित हैं.

पतंजलि के मैनेजिंग डायरेक्टर आचार्य बालकृष्ण कहते हैं, ‘‘आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए इसे प्रमाण-आधारित विज्ञान के रूप में विकसित करना ही होगा. नैदानिक परीक्षणों की मंजूरी इस दिशा में बड़ा कदम है.’’ (देखें इंटरव्यू) मेरठ के आनंद अस्पताल में सीनियर ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. संजय जैन की भी यही राय है, ‘‘रोगाणु हर जगह हैं लेकिन कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले ही बीमार पड़ते हैं. आयुर्वेदिक औषधियां यही क्षमता बढ़ाकर कोविड-19 वायरस को शरीर में घुसने से रोकती हैं.’’

ये परीक्षण कोविड के मरीजों के बीच से कुछ शुरुआती जानकारियां सामने आने के बाद किए जा रहे हैं. कोरोना वायरस के इलाज पर अनुसंधान में जुटी पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन की टीम के सह-प्रमुख वैद्य निश्चल नरेंद्र पंड्या दावा करते हैं, ‘‘कोरोना वायरस के 100 से ज्यादा मरीज आयुर्वेदिक औषधियों से ठीक हुए हैं. ये हल्के लक्षणों वाले मामले थे.’’ अब कोरोना के मरीजों को ये औषधियां देना शुरू करने के लिए अहमदाबाद के सिविल अस्पताल से बातचीत चल रही है.

इस मामले में एक बड़ी जानकारी आनंद अस्पताल में सामने आई, जहां स्टाफ के 45 क्वारंटीन कर्मचारियों के कोविड से संक्रमित होने का शक था. आयुर्वेदिक इलाज के 14 दिन बाद उनकी टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव आई. हालांकि हल्के लक्षणों वाले मरीजों का टेस्ट किसी चिकित्सीय इलाज के बगैर भी आम तौर पर नेगेटिव आ जाता है, लेकिन भारत में उपचार से यह संकेत मिलता है कि आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करके गंभीर लक्षणों की शुरुआत को रोकती हैं. इन परीक्षणों का ऐलान देश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने 7 मई को की. अगले 12 हफ्तों में इसकी पुष्टि की जानी है.

फिलहाल चार औषधियों—यष्टिमधु, अश्वगंधा, गुडुचि पीपली और आयुष 64—का अध्ययन किया जा रहा है. कोविड संक्रमण के तीन चरणों—रोकथाम, उपचार और बहाली का चरण—के लिए इन औषधियों का परीक्षण किया जाएगा. डॉ. हर्षवर्धन ने स्पष्ट किया कि ये परीक्षण नैदानिक परीक्षणों के सुनहरे मानदंडों का अनुसरण करेंगे (वे बेतरतीब, प्लेसीबो-नियंत्रित होंगे, भागीदारों की पर्याप्त संख्या होगी तथा विशेषज्ञों की समीक्षा के लिए वे उपलब्ध होंगे).

लेकिन आयुष मंत्रालय के दिशानिर्देशों में ऐसा कोई आदेश नहीं है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. राजन शर्मा कहते हैं, ''प्लेसीबो ग्रुप बेहद अहम है, यह रिसर्चर को खुश करने के लिए स्थिति में बदलाव बताने वाले लोगों की संभावना को खत्म कर देता है. बेतरतीब परीक्षण यह पन्न्का करने में भी मददगार है कि जिनका परीक्षण किया जा रहा है, वे रिसर्च की तरफदारी नहीं करेंगे.’’ उनके शब्दों में, ‘‘एलोपैथी हो या आयुर्वेद नैदानिक परीक्षण एक जैसे ही होते हैं.

आप साबित कर दें कि उपचार हर उम्र और जगह के लोगों के लिए असरदार है, तो आपकी बात निर्णायक हो जाती है.’’ हाल ही में एलोपैथिक डाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के प्रभावों को लेकर 96,000 लोगों पर हुआ और लांसेट पत्रिका में छपा एक अध्ययन वापस ले लिया गया क्योंकि शोधकर्ता समीक्षा के लिए डेटा नहीं दे सके.

आयुष मंत्रालय के दिशानिर्देशों के मुताबिक, परीक्षण में दूसरी बीमारियां से भी ग्रस्त मरीजों (कोविड के लिए सबसे ज्यादा जोखिम वाले) और गर्भवती महिलाओं को शामिल नहीं किया गया है और मरीज के वेंटिलेटर पर जाते ही इलाज रोक देना होगा. अंतर-अनुशासनीय आयुष अनुसंधान और विकास कार्यबल के चेयरमैन डॉ. भूषण पटवर्धन इस बाबत कहते हैं, ''हरेक क्लिनिकल ट्रायल में एक प्रोटोकॉल होता है. औषधि के तौर पर एक बार मंजूरी मिल जाने के बाद वह हरेक के लिए होती है. ये सहायक उपचार होते हैं जो मरीज को तेजी से ठीक होने में मदद करते हैं. मानक उपचार हमेशा की तरह जारी रहेगा.’’

आलोचकों का कहना है कि दवा का सार्वभौम परीक्षण करना होगा, यह भी स्वीकारना होगा कि आयुर्वेद में उपचार और औषधियों के निश्चित नियम हैं. रोगी की त्रिदोष प्रणाली और उस दिन के समय के आधार पर उपचारों में हेरफेर करना होता है. ऋतु भी एक पहलू होती है.

बेशक आयुर्वेद की अपनी सफलताएं रही हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता के मामले में इसके नजरिए और तौर-तरीकों से सीखा जा सकता है. ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद की डायरेक्टर तनुजा नेसरी कहती हैं, ‘‘आयुर्वेद के जनपदोध्वंस भाग में कोविड-19 सरीखी महामारियों से निबटने की प्रणालियों का जिक्र है. ऐसी औषधियां और नियम-कायदे हैं जो कोविड-19 पर काबू पाने में उपयोगी हो सकते हैं.’’

अलबत्ता चिकित्सकीय समर्थन या नैदानिक प्रमाण के बगैर कोविड के निश्चित उपचारों के बारे में मैन्युफैक्चरर्स की तरफ से जो दावे किए जा रहे हैं, वे आयुर्वेद को ज्यादा वैज्ञानिक स्वीकृति दिलवाने के लिए की जा रही कोशिशों को रेखांकित करते हैं. आयुष मंत्रालय ने इन पर नियंत्रण के कुछ सख्त कदम उठाए हैं, यहां तक कि ऐसे दावों को हतोत्साहित करने के लिए नोटिस भी जारी किया है. एलोपैथी विज्ञान के मुकाबले दवाइयां देने के आयुर्वेद के नियमों में कुछ अंदरूनी दिक्कतें हैं.

आयुर्वेदिक उपचार ज्यादा सुलभ, सस्ते और प्राकृतिक हैं, पर वे तेजी से असर नहीं दिखाते, न ही ऐसे समय दिए जा सकते हैं जब व्यक्ति हाइपोक्सिया और थ्रोंबोसिस सरीखे कोविड के तीव्र लक्षणों से ग्रस्त हो. वे मोटे तौर पर कोविड को हल्के से तीव्र लक्षणों में बदलने से रोक सकते हैं. अभी जब रोग-प्रतिरोधक क्षमता पर कोविड के प्रभावों का शमन करने के लिए उपचार खोजने की दौड़ का आखिरी सिरा दूर तक नजर नहीं आता, आयुर्वेदिक दवा के परीक्षणों का कोई भी सकारात्मक नतीजा निश्चित तौर पर कइयों के लिए राहत होगा.

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Author: Zonia Mosciski DO

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